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निरापद ढंग से / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
यह ऐसा समय है साथी
जब कोई कुछ नहीं कर रहा
सब कविता कर रहे
निरापद ढंग से
जैसे-कुत्तों से घिरा
अकेला कुत्ता
दिखलाता है दाँत
और सुरक्षित दूरी बनाता
निकल पाता है किसी तरह
कर रहे हैं क्रान्ति
कवि भी
कागज के प्रदेश में।