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निराला का बसंत / दीपाली अग्रवाल

 तुम्हारी बातें जैसे 'जूही, नरगिस, बेला' खिलें',
तुम्हारी मौजूदगी 'वनबेला' से तारतम्य है,
तुम्हारी छुअन कि लगे 'शिशिर' का आगमन,
तुम्हारी याद मानो 'सीकर' की महक
और तुम ख़ुद ?
लगता है कि 'निराला' का 'बसंत' आ गया