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निवतौ: 2 / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
थारी-म्हारी
मुगती रा
पूरीजता सपना
जांणै
नदियां रौ
समदर में
गमणौ।
आव
भेळा होय
नदियां नै
निवतां
समदरनै
उणरा
अरथ सूंपां।