फूल जो मुरझा रहे 
जग-वल्लरी पर 
अधखिले 
कारण उसी का खोजता हूँ!  
हे प्राण! 
मुझको माफ़ करना 
यदि तुम्हारे गीत कुछ दिन 
मैं न गाऊँ! 
स्वर्ण आभा-सा 
सुवासित तन तुम्हारा देख 
अनदेखा करूँ, 
छवि पर न मोहित हो 
तनिक भी मुसकराऊँ!  
फूल जब मुरझा रहे 
वसुधा बनी विधवा 
सुमुखि! 
फिर अर्थ क्या शृंगार का, 
पग-नूपुरों की गूँजती झंकार का?   
हर फूल खिलने दो ज़रा, 
डालियों पर प्यार हिलने दो ज़रा!