भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निवेदन / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
( झिम्पुड़ा के लिए )
मत तोड़ री
फूल अभी
इन्हें डाली पर ही
टँका रहने दे
आज तू
अपने भगवान को
हल्दी कुंकू वगैरह
ज़्यादा लगा देना
फूलों के खिलने की बात
उड़ा दी हवाओं ने चुपचाप
देखना थोड़ी देर में
सुंदर-सुंदर पंखों वाली
तितलियाँ प्यारी प्यारी
आकार थिरकेंगी यहाँ
वे जाने कहाँ-कहाँ से आती है
मन में आस लिए, मिठास लिए
फूल नहीं दिखे अगर
सारी आस खट्टी हो जाएगी
फिर फूलों की रानी
तुझसे कट्टी हो जाएगी
भगवान को तू
क्या किसी की कट्टी चढ़ाएगी
मत तोड़ री
फूल अभी