भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निवेदन / विहान / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अभिशाप भले ही दे दो, पर
वरदान नहीं देना मुझको!
जब सविता जैसा चमक पडूँ,
जब मधुघट बनकर छलक पडूँ,
तब लघुता मुझमें भर देना,
अभिमान नहीं देना मुझको!
मूक ग़रीबी का साया हो,
जब सुख माया-ही-माया हो,
संघर्षों में मिटने देना,
पर, दान नहीं देना मुझको!
रचनाकाल: 1945