भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निवेदन / हरिऔध
Kavita Kosh से
हम सदा फूलें फ़लें देखें सुदिन।
पर उतारा जाय कोई सर नहीं।
हो कलेजा तर रहे तर आँख भी।
पर लहू से हाथ होवे तर नहीं।
रंगरलियाँ हमें मनाना है।
रंग जम जाय क्यों न जलवों से।
है ललक लाल लाल रंगत की।
आँख मल जाय क्यों न तलवों से।