भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निषिद्ध / बोधिसत्व

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कोई याद आता है

आरती के समय,

भोग लगाते समय,

जलाभिषेक के समय

नींद के समय

कभी-कभी एकदम रात में

जब घंटियाँ रो रही होती हैं पूजा की

जब शंख भीतर ही भीतर

सुबक रहे होते हैं

कोई याद आता है, निषिद्ध !