भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निस्तल यह जीवन रहस्य / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
निस्तल यह जीवन रहस्य,
यदि थाह न मिले, वृथा है खेद!
सौ मुख से सौ बातें कहलें
लोग भले, तू रह अक्लेद!
सूक्ष्म हृदय इस मुक्ताफल का
कभी न कोई पाया बेध,
गोपन सत्य रहा नित गोपन,
भेद रहा चिर अविदित भेद!