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नींद-२ : कितनी प्यारी है नींद / सुरेन्द्र स्निग्ध
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नींद की गहरी खाई को
पाटती
हहाती बस
बढ़ी चली जा रही है
गन्तव्य की ओर ।
अन्धेरे में
भागता जा रहा है जंगल
भागते जंगलों के साथ
आँख-मिचौली
खेल रही है
मेरी नींद
कितनी प्यारी है नींद ।
भागते जंगलों के बीच
लिपटी है
मेरी आँखों से
काट रही है
अन्धकार
के जंगल ।