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नींद आती नहीं कम-बख़्त दिवानी आ जा / रंगीन
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नींद आती नहीं कम-बख़्त दिवानी आ जा
अपनी बीती कोई कह आज कहानी आ जा
हाथ पर तेरे मूए किस के है छल्ले का दाग़
दी है ये किस ने तुझे अपनी निशानी आ जा
जब वो रूठा था तभी तू ने मिला मुझ से दिया
मैं ने कुछ क़द्र तिरी हाए न जानी आ जा
सब्ज़-रंग अब के है नौ-रोज़ का इस सर की क़सम
जोड़ा ला कर तू पिन्हावे मुझे धानी आ जा
बाल माथे के जो डोरे से सिए हैं तू ने
शक्ल लगती है तिरी आज डरानी आ जा
ग़म है रंगीं को न मेरा यूँही उस के पीछे
मुफ़्त बर्बाद हुई मेरी जवानी आ जा