Last modified on 29 जनवरी 2010, at 11:44

नींद पलकों प धरी रहती थी / आलम खुर्शीद

नींद पलकों में धरी रहती थी
जब ख़यालों में परी रहती थी
 
ख़्वाब जब तक थे मेरी आंखों में
शाख़े- उम्मीद हरी रहती थी
 
एक दरिया था तेरी यादों का
दिल के सेहरा में तरी रहती थी
 
कोई चिड़िया थी मेरे अंदर भी
जो हर इक ग़म से बरी रहती थी
 
हैरती अब हैं सभी पैमाने
ये सुराही तो भरी रहती थी
 
कितने पैबन्द नज़र आते हैं
जिन लिबासों में ज़री रहती थी
 
एक आलम था मेरे क़दमों में
पास जादू की दरी रहती थी