भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद में ख़लल / सरोज परमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पथराई गली पर बूटों की
खिट खिट निरंतर
टिक टिक टप टप हुम्म
बोझा ढोते खच्चर
कुछ आवाज़ें टिटकराने की
कुछ फुसफुसाहतें
कुछ दबी-घुटी हंसी
ओसारे में सोई चिढ़िया की
नींद में ख़लल डालती है।