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नींद / उंगारेत्ती

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सो गई हैं कुब्जा पहाड़ियाँ ये

अंधेरे में घाटियों के

कुछ नहीं व्यापता मुझे

कुछ भी तो बचा है नहीं

झींगुरों की टर्राहट के सिवा

जो हमक़दम है

मेरे परीशाँ ख़यालों की ।