भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींद / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
आंख्यां बंद कर्यां तो
आवै कोनीं नींद
नींद तो आयां ई आवै
आवै कियां नींद
ओ कुण बतावै?
ओ पूछतां ई देख्या
कित्ती सला आवै!
कई भाइडा तो
आगलै दिन
कुण नै
किण बात माथै
काईं सला देवणीं है
इण चिंत्या मैं
आखी-आखी रात
जागता रैवै!