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नींद / महेन्द्र भटनागर

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आज मेरे लोचनों में

नींद घिरती आ रही है !

व्योम से आती हुई रजनी
मृदुल माँ-वत् करों से थपकियाँ देती,
नव-सितारों से जड़ित आँचल
बिछा है, आँख सुख की झपकियाँ लेतीं,

चन्द्र-मुख से सित-सुधा की
धार झरती आ रही है !

सुन रहा हूँ स्नेह का मधुमय
तुम्हारा गीत कुसुमों और डालों से,
प्रति-ध्वनित है आज पत्थर से
वही संगीत सरिता और नालों से

रागिनी उर में सुखद मद
भाव भरती जा रही है !

बन्द पलकों के हुए पट, पर
दिखायी दे रहा यह, पी रहा हूँ मैं,
नव पयोधर से किसी का दूध
शीतल, भान भी है यह, कहाँ हूँ मैं,

स्वस्थ मांसल देह-छाया
झूम गिरती आ रही है !