भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीति के दोहे / रामनरेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(१)
विद्या, साहस, धैर्य, बल, पटुता और चरित्र।
बुद्धिमान के ये छवौ, हैं स्वाभाविक मित्र॥
(२)
नारिकेल सम हैं सुजन, अंतर दया निधान।
बाहर मृदु भीतर कठिन, शठ हैं बेर समान॥
(३)
आकृति, लोचन, बचन, मुख, इंगित, चेष्टा, चाल।
बतला देते हैं यही, भीतर का सब हाल॥
(४)
स्थान-भ्रष्ट कुलकामिनी, ब्राह्मण सचिव-नरेश।
ये शोभा पाते नहीं, नर, नख, रद, कुच, केश॥
(५)
शस्त्र, वस्त्र, भोजन, भवन, नारी सुखद नवीन।
किंतु अन्न, सेवक, सचिव, उत्तम हैं प्राचीन॥