भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नीमख़ाबी / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
हुस्न का दरिया चढ़ता है आँखों में यादों की नदी उमड़ती है- अँधेरा है अकेला हूँ,शहर से दूर नीमख़ाबी में,कहीं ठिठकता आसमाँ बेनूर ख़ामोश रात भी सिसकती थके क़दम सुब्हद की जानिब बढ़ती है यादों की नदी उमड़ती है