भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नीरवता में / इंदिरा शर्मा
Kavita Kosh से
मायावी रात का वह क्षण
वह अनुभूति
वह तारों का खिलखिलाना
फिर अनंत ब्रह्माण्ड की कालिमा में दूब जाना |
वह नित – नित नूतन चिर सत्य
जो केवल मैंने जाना
उस अद्भुत नीरवता में
तुम्हें पाना
फिर सहसा
टूटते तारे सा तुम्हारा खो जाना
दूर –
आकाश के पार अनचीन्हा , अनपहचाना |
पुन: मुझे
इंगित कर बुलाना
हौले से मुस्कुराना
मन के किसी कोने में चुपके से झाँक जाना
यही तो मैंने जीवन भर जाना |
मायावी रात का वह क्षण
वह अनुभूति
वह तारों का खिलखिलाना
रात्रि की निस्तब्धता
और मेरा गुनगुनाना
क्या तुमने पहचाना |
मायावी रात का वह क्षण