भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीला रंग / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बरसों पहले बेसुरे स्वर में
एक गीत सुना था
नीला आसमाँ सो गया...
क्या आसमाँ भी कभी सोता है?
लेकिन नीला आसमान
जरुर कहीं खो गया है
नीली गंगा खो गयी है
नीली यमुना खो गयी है
नीला समुंद्र खो गया है
नीले पर्वत खो गये हैं
मैं रोज़ देखता हूँ उन्हें
पल पल कुरुप होते
दुर्गंध से भरे
किसी सडे़ हुये शव की भाँति
जिसे नौचते सफ़ेद रंग के भयावह कव्वे..
मैं भी क्या करुँगा?
मैं मरने से पहले
इस पृथ्वी पर पीछे छोड़ जाऊँगा
असाध्य कचरे के कई ढेर
और एक अधजली लाश
गंगा में तैरने के लिये
जिसे ठण्डा करने में
मृतप्राय: गंगा को
देनी होगी आहुति
अंजुली भर जल की
जीवनपर्यन्त मैं कुछ न कर पाया
कि नीला रंग विलुप्त हो रहा है
उसकी जगह ले रहा है
एक खुरदुरा, असामान्य
और भयभीत करने वाला रंग
नीला आसमाँ कभी नहीं सोता
नीला आसमाँ खो गया है
क्योंकि मैं सुसुप्त हूँ
मैं अभियुक्त हूँ
मैं अभिशिप्त हूँ
मैं निर्लिप्त हूँ