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नीला विस्तार / सविता सिंह

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बस कुछ और दूर चलकर
छूट जाएगा हमारा साथ मेरी कविता
तुम्हें जाना होगा वहाँ
जहाँ समुद्र लहरा रहा होगा
जहाँ स्वप्न जाग रहे होंगे
जहाँ एक स्त्री लाँघ रही होगी एक अलंघ्य प्यास
वहाँ पहुँचकर मुड़ना होगा मेरी तरफ तुम्हें
कम से कम एक बार

बताना होगा क्या स्वप्न और स्त्री एक ही हैं –-
रात के दो फूल
दो दीप अंधकार के
जिनके जलने से तारे रोशनी पाते हैं
आकाश सजता है जिनसे हर रात
बताना क्या रिश्ता है उनका आपस में

क्या स्त्री सचमुच रात है जैसा मैं जानती हूँ
या रात में स्वप्न है वह
एक नीला विस्तार
अज्ञात है जिसका ज़्यादातर हिस्सा