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नुकीली चीज़ें / मंगलेश डबराल

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(हिन्दी कवि असद ज़ैदी और चेक कवि ल्युदविक कुण्देरा के प्रति आभार सहित)

तमाम नुकीली चीज़ों को छिपा देना चाहिए
काँटों-कीलों को वहीं दफ़्न कर देना चाहिए जहाँ वे हैं
जो कुछ चुभता हो या चुभने वाला हो
उसे तत्काल निकाल देना चाहिए
जो चीज़ें अपनी जगहों से बाहर निकली हुई हैं
उन्हें समेट कर अपनी जगह कर देना चाहिए
फूलों को काँटों के बीच नहीं खिलना चाहिए
धारदार चीज़ें सिर्फ़ सब्ज़ी और फल काटने के लिए होनी चाहिए
उन्हें उस स्त्री के हाथ में होना चाहिए
जो एक छोटी सी जगह में धुएँ में घिरी कुछ बुनियादी कामों में उलझी है
या उस डॉक्टर के हाथ में होना चाहिए
जो ऑपरेशन की मेज़ पर तन्मयता से झुका हुआ है
तलवारों बंदू़कों और पिस्तौलों पर पाबंदी लगा देनी चाहिए
खिलौना निर्माताओं से कह दिया जाना चाहिए
कि वे खिलौने को पिस्तौल में न बदलें
प्रतिशोध हिंसा हत्या और ऐसे ही समानार्थी शब्द
शब्दकोशों से हमेशा के लिए बाहर कर दिये जाने चाहिए
जैसा कि हिन्दी का एक कवि असद ज़ैदी कहता है
पसलियों में छुरे घोंपनेवालों को उन्हें वापस खींचना चाहिए
और मरते हुए लोगों को वापस लाकर उन्हें उनकी बैठकों
और काम की जगहों में बिठाना चाहिए
हत्यारों से कहा जाना चाहिए
कि एक भी मनुष्य का मरना पूरी मनुष्यता की मृत्यु है
दुनिया को इस तरह होना चाहिए
जैसे एक चेक कवि ल्युदविक कुन्देरा
पहली बार माँ बनने जा रही एक स्त्री को देखकर कहता है
कि पृथ्वी आश्चर्यजनक ढंग से गोल है
और अपने तमाम काँटों को झाड़ चुकी है।