भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नुमूद-ए-रंग-ओ-बू ने मार डाला / अमीन हज़ीं
Kavita Kosh से
नुमूद-ए-रंग-ओ-बू ने मार डाला
उसी की आरज़ू ने मार डाला
न दुनिया ही का रक्खा और न दीं का
दिल-ए-मदहोश तू ने मार डाला
तकल्लुम का फ़ुसूँ अल्लाहु-अकबर
किसी की गुफ़्तुगू ने मार डाला
न रूदाद-ए-हुबाब-ए-ज़िंदगी पूछ
ख़िराम-ए-आब-जू ने मार डाला
ख़ुदा वाइज़ से समझ हश्र के दिन
हमें उस बे-वुज़ू ने मार डाला
ज़माने के ‘अमीं’ मुँह कौन आता
ख़याल-ए-आबरू ने मार डाला