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नूर सूरज का खो गया शायद / रंजना वर्मा
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नूर सूरज का खो गया शायद
हो गयी धूप बेवफ़ा शायद
चाँद है आसमाँ में तनहा
चाँदनी कर गयी दग़ा शायद
भोर में भी नहीं कमल खिलता
हो गया है उसे नशा शायद
फूल के बीच सो गया भँवरा
याद रब को है कर रहा शायद
खिल रहे फूल फिर उमीदों के
कोई बर आयी फिर दुआ शायद
गुम हुई रौशनी तलाश करें
ले गया है कोई चुरा शायद
जुगनुओं को चकोर चुग लेते
है हुई उन से कुछ खता शायद