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नृत्य / रामनरेश त्रिपाठी

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नाचती है भूमि नाचते हैं रवि राकापति
नाचते हैं तारागण धूमकेतु धाराधर।
नाचता है मन, नाचते हैं अणु परमाणु
नाचता है काल बन ब्रह्मा, विष्णु और हर॥
नाचता समीर अविराम गति से है सदा
नाचती है ऋतुएँ अनेक रूप रंग कर।
नाचता है जीव नाना देह धर बार बार
देखता है नृत्य, वह कौन है रसिकवर?