भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नेकी की खुशबू / उषा यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूलों में खुशबू होती है,
लगते कितने प्यारे।
जी चाहे झोली में भर लूँ।
वे सारे के सारे।

अमरूदों की खुशबू का भी
ढम-ढम बजता बाजा।
अव्वल आकर आम बना है
किन्तु फलों का राजा।

चन्दन की भीनी –सी खुशबू
सचमुच बड़ी निराली।
मन करता मैं उसको घिसकर
भर लूँ पूरी प्याली।

मेरा नन्हा –मुन्ना भइया
मुझको बहुत दुलारा।
उसको सूँघूँ तो लगता है
खुशबू का फव्वारा।
पर जो खुशबू सबसे अनुपम
सारा जग महकाती।
वह नेकी की खुशबू, उसको
दुनिया शीश नवाती।