भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नेतृत्व का नायक / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नेतृत्व का नायक
कभी यहाँ,
कभी वहाँ
भटकता है,
अपना सिर
बुरी तरह पटकता है,
झाड़ियों के मुँह में
अटकता है,
सत्य की
आँख में खटकता है।

रचनाकाल: ०१-०८-१९९१