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नेपाल का है गम : 2015 / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'
Kavita Kosh से
जो स्वर्ग सी सुंदर थी
क्यों अब मौत की घाटी बनी?
उस सुबह जो यूँ दफन हुए
न नसीब उनको कफन हुए।
खौफ का है क्यों अंधेरा
ए खुदा फिर ला सवेरा।
अब न काँपे जमीं का सीना
फिर उठ खड़ा हो,
तुझे है जीना।
चल दुआ कर ले
जख्म प्यार से भर दे।
इक सुबह थी वह काली सी
जो रात बनके छा गई-
उतरी क़ज़ा,
दे दी सज़ा,
मासूमों को, वो खा गई।
सुन आज धरती क्यों खफा है
हम ही हैं जो बेवफा हैं।
न पेड़ काटो,
पहाड़ काटो,
धरती को, तुम यूँ न बाँटो।
चल दुआ कर ले
जख्म प्यार से भर दे।
नेपाल का है गम,
भारत की आँखें नम।