ऋतुराज मोहक लगा ये सयाना। 
जिसने भरा नेह का आब दाना। 
रुनझुन चली ठंड यों गुनगुनाती, 
पीहर गली है उसे जो सजाना। 
आओ चलें राग जीवन सजायें, 
चाहत भरा एक नवछंद गाना। 
रिश्ते सजे रंज रंजिश भुलाकर, 
अंतस महकता हमें यों बनाना। 
मधुरस पगे पुष्प चहुँदिक लुभाये, 
फागुन वसंती तराने सुनाना। 
कर दो सरस सिक्त आकाश गंगे, 
तुमने सिखाया द्रवित भीग जाना। 
कटुता मिटे घुल सके प्रेम करुणा, 
ईर्ष्या जगत से हमें है मिटाना।