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नेह बगीचा / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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चूक न हो अब
सब जन मिलकर
नया बगीचा रोपें
सूखे पेड़ों को काटें
और झाड़ियाँ भी जड़ से
निर्मूलित करें बबूलों को
खड़े हुए जो धड़ से
बनें इंद्रजित
डरें नहीं अब
वे कितना भी कोपें
सब कुछ आच्छादित करती
उस अमरबेल को छाँटें
सगुन परिंदों की टोली को
नई बहारें बाँटें
हम नकार दें
सभी जहर वे
गये कभी जो थोपे
पीपल,बरगद और नीम को
फिर रोपें सुखी रहें
मलय पवन के झोंके आयें
कलियाँ भी सुखी रहें
समरसता का
नेह बगीचा
नया-नया फिर रोपें