Last modified on 7 अगस्त 2009, at 21:31

नैनन अंतर आव तू, नयन झाँप तोहि लेऊँ / सूरदास

"नैनन अंतर आव तू, नयन झाँप तोहि लेऊँ
ना में देखूँ और कूँ, ना तोहे देखन देऊँ।।"
सबसे ऊँची प्रेम सगाई ।

दुर्योधन को मेवा त्याग्यो, साग विदुर घर पाई ॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई ।

जूठे फल सबरी के खाये, बहु बिधि प्रेम लगाई ॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई ।

प्रेम के बस नृप सेवा कीन्ही, आप बने हरि नाई ॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।

राजसुय यज्ञ युधिष्ठिर कीनो, तामै जूठा उठाई ॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई ।

प्रेम के बस अर्जुन रथ हाँख्यो, भूल गये ठकुराई ॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।

ऐसी प्रीति बढी वृन्दावन, गोपिन नाच नचाई ॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।

सूर क्रूर इस लायक नाही, कह लग करउ बढाई ॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।