भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नैन बचाइ चवाइन के छन रैन में छ्वै निकसी यह टोली / सेवक
Kavita Kosh से
नैन बचाइ चवाइन के छन रैन में छ्वै निकसी यह टोली ।
लौटि मिलैंगे जबै घर के नहिँ भूलिहै सेवक भावती भोली ।
देखि तुम्हैँ छतियां फरकी त्योँ तनी तरकी दरकी कछु चोली ।
आपने पी की नुहारि निहारि बिचारि कै तोसों मरूँ करि बोली ।
सेवक का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।