नोमां महीना गर्भवती मेरे आसंग ना गोड्यां मैं / मेहर सिंह
वार्ता- सज्जनों अंजना अपने विचारों में खोई, डरी सहमी, जंगलों जंगल चली जा रही थी उसके पांव में ठोकर लगी तथा पवन की दी हुई अंगूठी अंगुली से निकल कर गुम हो गई। वह फिर गिरती-पड़ती चलती है तो उसे एक कुटिया दिखाई देती है। वह अनेक शंकाओं से घिरी उस कुटिया में पहुंच जाती है। इसका चित्रण कवि इस प्रकार करता है-
सास जली नै घर तै काढ़ी दे झूठे ओड्यां मैं।
नोमां महीना गर्भवती मेरे आसंग ना गोड्यां मैं।टेक
के सुख देख्या उस दिन तै जब तै ल्याया ब्याह कै
काटे बारा साल मनै उस महल दुहागी मैं जा कै
कुणसे जनम का दुःख दिया था उस रात अंधेरी मैं आ कै
बासी कुसी खा कै नै दिन काटे काग उड़ा कै
बिना पति मेरी उम्र कटै ना थारे महल हवेली टोडयां मैं।
हे ईश्वर मनै एक सहारा एक आसरा तेरा,
डर लागै मेरी ज्यान अकेली जंगल में घोर अंधेरा
ठोकर लाग कै पड़ी धरण पै दिख्या कोन्या झेरा
उठ कै चाली तै गुठी रहगी पाट्या कोन्या बेरा
पता नहीं कित आण फंसी आड़ै सांहसी कांजर ओडां मैं
नोमां महीना रात अंधेरी न्यू काया घबराई
चलते चलते एक रोशनी सी चसती दई दिखाई
देर करी ना पल भर की कुटिया कै धौरे आई
बैठया ऋषि भजन करै था पैरां मैं नाड़ झुकाई
न्यू बेरा ना संन्यासी अक आण घिरी आडै मोडया मैं।
बैरी सैंतीस के सन मैं वे अड़गे कर्म अगाड़ी
भर्ती होग्या खेत क्यार नै छोड़ देखी जाकै पहाड़ी
लाणे का कोल्हु पोह का पाला बाज्या करती जाड़ी
मेहर सिंह तनै हल जोड़या मनै काटै हींस और झाड़ी
चुगचुग बाड़ी मेरे हाथ फूटगे इन कांशी के डोड्यां मैं।