एक औरत के यहाँ काम करती थी
नीच प्रवृत्ति की नहीं थी वह
झाड़ू-पोंछा करना पड़ता था
उसे घर के बारह कमरों में।
सुबह का नाश्ता बनाना पड़ता था
दोपहर और रात का खाना भी
उसके बाद समय बचा तो
उसके बच्चों को भी सम्हालो।
धोना-पोंछना, कपड़ों को इस्तरी करना,
ऊपर से कुत्ते को भी घुमाना।
इतने काम के बोझ से मेरा शरीर
चूर-चूर हो जाता था थक कर।
एक दिन मैंने कहा- "मालकिन!
मेरी देह टूट रही है।
आख़िर इतना क्यों खटाती हो?
चाहती क्या हो?
एकदम से गधी बना देना?"
वह तो अवाक हो गई मेरी बात सुनकर।
कहा- "अरी, अलबत्ता, ऐसा तो नहीं है
मैं तुझे कितना प्यार करती हूँ,
यह तो तू जानती ही है।"
मैंने कहा- "प्यारी मालकिन!
तुम्हारी बात तो ठीक है,
पर क्या मैं तुम्हें प्यार करूँगी?
क्या मैं इतनी बेवकूफ़ हूँ?
कोई कुतिया हूँ क्या?"
मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : राम कृष्ण पाण्डेय