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नौकर हैं बिन दाम के / उषा यादव

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उलझे-उलझे बाल हैं।
लाल टमाटर गाल हैं।
मम्मी की गोदी चढ़ने को
मुन्ने जी बेहाल हैं।

मोटर फेंकी दूर है।
बिस्कुट चकनाचूर है।
मचल रहे, पर चोट न खाएँ,
इतना ध्यान जरूर है,।

सुबह, दोपहर, शाम के।
दिन के सारे काम के।
मम्मी-पापा दोनों इनके
नौकर हैं बिन दाम के।