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न्यूयार्क की अन्धी परिक्रमा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का / विनोद दास

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अगर राख से ढके ये परिन्दे नहीं हैं
अगर शादी की खिड़की को पीटती ये चीख़ें नहीं है
तो यह वायुमण्डल का वह नाज़ुक जीव है
जो अन्तहीन अन्धेरे में ताज़ा खून बहाता है

गो कि ये परिन्दे नहीं हैं
क्योंकि परिन्दे जल्दी ही बैल बन जाएँगे
वे चान्द की मदद से सफ़ेद चट्टान बन सकते थे ।
और जजों के कपड़ा ऊपर उठाने के पहले
वे हमेशा ज़ख्मी लड़कियाँ हैं

हर कोई उस दर्द को समझता है
जो मौत के साथ आती है
वैसे सच्चा दर्द न तो आत्मा में वास करता है
न ही वायुमण्डल में, न ही हमारी ज़िन्दगी में
न ही रहता है लहराते धुएँ भरे बारजों के ऊपर
हर चीज़ को जगाकर रखने वाला सच्चा प्रेम
नन्हा सा होता है जो दूसरी व्यवस्था की अबोध आँखों में
अनन्त समय तक दहकता रहता है ।

उतरन का सूट कन्धों पर इतना भारी लगता है
कि आसमान अक्सर सिकोड़ कर उसे फटीचर घनिष्ठता में बदल देता है
और जो जचगी के दौरान मर जाते हैं, वे अपने आख़िरी समय में सबक़ सीखते हैं
कि हर बुदबुदाहट पत्थर हो जाएगी और हर क़दम पर दिल धुक-धुक करेगा
हम भूल जाते हैं कि दिमाग के भी शहर होते हैं
जहाँ चीनी जन और इल्लियाँ दार्शनिकों को चाव से पढ़ते हैं ।

और कुछ कमज़ोर दिमाग बच्चों ने रसोई में
खप्पचियों पर उन नन्हें अबाबीलों को तलाश लिया
जो मोहब्बत लफ़्ज़ बोल सकते थे
नहीं, ये परिन्दे नहीं हैं
कोई परिन्दा समुद्री खाड़ी के तकलीफ़देह बुख़ार का बयान नहीं कर सकता
न ही उसकी हत्या के लिए इल्तज़ा कर सकता है
जो हर पल हमें सताता रहता है
न ही आत्महत्या की खनकती धुन को गुनगुना सकता है
जो हर सुबह हमें फिर से ज़िन्दा करती है
यह वायुमण्डल की वह छोटी-सी डिबिया है जहाँ हम पूरी दुनिया को सहते हैं

रोशनी और हवा की झक्की दोस्ती में ज़िन्दा एक छोटी सी जगह
व्याख्या से परे एक ऐसी सीढ़ी जिस पर बादल और गुलाब
उस चीनी चीख़-चिल्लाहट को भूल जाते हैं
जो रक्त के तटबन्ध पर उबलता रहता है
उस आग को पाने की कोशिश में जो हर चीज़ को जगा कर रखती है
मैं अक्सर अपने में खो जाता हूँ
और कुल मिलकर मैं यह पाता हूँ
कि नाविक रेलिंग पर झुके हुए हैं
और बर्फ़ के नीचे छोटे-छोटे आसमानी जीव दफ़न हैं
अगरचे सच्चा दर्द कहीं किसी दूसरे चौक पर है
जहाँ क्रिस्टलीकृत मछलियाँ दरख्त के तनों के भीतर मर रही हैं

नीले आसमान में यह एक ऐसा चौक है
जो पुराने साबुत मुजस्स्मों
और ज्वालामुखियों की आत्मीय कोमलता से अलहदा हैं
आवाज़ में कोई दर्द नहीं है, केवल दाँत मौज़ूद हैं
लेकिन दाँत अलग-थलग हैं जिन्हें काली मलमल ख़ामोश कर देगी
आवाज़ में कोई दर्द नहीं है, सिर्फ यहाँ धरती मौजूद है
धरती और इसका समयहीन दरवाज़ा
जो फल की लाली की ओर जाता है

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास