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न्योता / दिनेश कुमार शुक्ल

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आवाज़ों में
आवाज़ों की आवाजाही

सर-सर करती
रेशम की साड़ियाँ कीमती
बातें बातों से
बातों की ही बातें करती हैं

बाकी सब बेबात
खड़ी सहमी-सहमी-सी
देख रही हैं आँखें फाड़े
शाम सुबह के कानों में
फुसफुसा रही है
चलो चलें अब

बच्चे चुप हैं
बूढ़े चुप हैं
खाँसी आ जाती है
इतना तेज इत्र है
नये धनी
सोफे पर बैठे
निर्धन नातेदारों से
दूरियाँ बनाकर
जिनको बस से जाना है
वे लौट रहे हैं
वही अकेला छूट गया है
उधर नहीं जाती है बस भी
नहीं मिला कोई हमराही

आवाज़ों में
आवाज़ों की आवाजाही।