भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न आए की प्रतीक्षा में / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
न आए की प्रतीक्षा में
न आए से सम्बद्ध
मैं-
न आए के बोध को
अपने बोध में
जी रहा हूँ
अपने लिए
उसके लिए
रचनाकाल: २१-१०-१९७०