भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न कर इश्क इनसे दगा देंगे तारे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न कर इश्क़ इनसे दगा देंगे तारे।
अगर पास आए जला देंगे तारे।

अँधेरे में ही टिमटिमाते हैं ये सब,
उजाले में ख़ुद को छिपा देंगे तारे।

बड़ी दूर हैं इनसे आशा न कर कुछ,
हैं ख़ुद दिलजले तुझको क्या देंगे तारे।

हैं कबसे हैं कितने न जाने ये कोई,
न कर इनकी गिनती पका देंगे तारे।

मरेंगे तो दिक्काल में छेद होगा,
जिसे भी छुएँगें मिटा देंगे तारे।