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न कहो ऐतबार है किस का / शेख़ अली बख़्श 'बीमार'
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न कहो ऐतबार है किस का
बे-वफ़ाई शेआर है किस का
ऐ अजल शाम-ए-हिज्र आ पहुँची
अब तुझे इंतिज़ार है किस का
इश्क़ से मैं ख़बर नहीं या रब
दाग़-ए-दिल यादगार है किस का
दिल तो ज़ालिम नहीं तिरी जागीर
तो ये उजड़ा दयार है किस का
मोहतसिब पूछ मय-परस्तों से
नाम आमर्ज़-गार है किस का
बज़्म में वो नहीं उठाते आँख
देखना ना-गवार है किस का
पहने फिरता है मातमी पोशाक
आसमाँ सोगवार है किस का
चैन से सो रहो गले लग कर
शौक़ बे-इख़्तियार है किस का
आप सा सब को वो समझते हैं
मोतबर इंकिसार है किस का
यार के बस में है उम्मीद-ए-विसाल
यार पर इख़्तियार है किस का
आप ‘बीमार’ हम हुए रूसवा
सरनिगूँ राज़-दार है किस का