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न कुछ, तुम एक चित्र हो / केदारनाथ अग्रवाल
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न कुछ, तुम एक चित्र हो
रंगों से उभर आए अंगों का
जवान
जादुई
जागता
मन पर मेरे अंकित
मेरे जीवन की परिक्रमा का
अशान्त
अतृप्त
अनिवार्य
रंगीन विद्रोह ।