न कुछ शोख़ी चली बादे-सबा की / मोमिन
न कुछ शोख़ी1 चली बादे-सबा2 की
बिगड़ने में भी उसकी ज़ुल्फ़ बना की
कभी इंसाफ़ ही देखा न दीदार3
क़यामत अक़्सर उस कू4 में रहा की
फ़लक़5 के हाथ से मैं जा छिपूँ गर
ख़बर ला दे कोई तहतुलसरा6 की
शबे-वस्ले-अदू7 क्या-क्या जला हूँ
हक़ीक़त खुल गयी रोज़े-जज़ा8 की
चमन में कोई उस कू से न आया
गयी बरबाद सब मेहनत सबा की
कशीदे-दिल9 पे बाँधी है कमर आज
नहीं ख़ैर10 आपके बन्दे-क़बा11 की
किया जब इल्तिफ़ात12 उसने ज़रा-सा
पड़ी हमको हुसूले-मुद्दआ13 की
कहा है ग़ैर ने तुमसे मेरा हाल
कहे देती है बेबाकी14 अदा की
शब्दार्थ:
1. चुलबुलापन, 2. सुबह की हवा, 3. मेल, 4. कूचा, 5. आसमान, 6. पाताल, 7. दुश्मन, 8. क़यामत का दिन, 9. दिल खोलना, 10. सुरक्षा, 11. चोली के बंद, 12. कृपा, 13. काम निकालना, 14. बेख़ौफ़ी