Last modified on 9 जनवरी 2011, at 14:23

न कोई है - दो / केदारनाथ अग्रवाल

न कोई है
-न कोई हो सकता
मेरा दुश्मन
सिवाय मेरे
जो पशु है
पिशाच है
सब का अभिशाप है-
मैं उसे मारूँगा
बोध से
विचार से
कर्म और मर्म के प्रसार से

रचनाकाल: १५-०७-१९६७