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न कोई है - दो / केदारनाथ अग्रवाल
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न कोई है
-न कोई हो सकता
मेरा दुश्मन
सिवाय मेरे
जो पशु है
पिशाच है
सब का अभिशाप है-
मैं उसे मारूँगा
बोध से
विचार से
कर्म और मर्म के प्रसार से
रचनाकाल: १५-०७-१९६७