भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न चूम सकूँ, न प्यार कर / नाज़िम हिक़मत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न चूम सकूँ, न प्यार कर सकूँ,

तुम्हारी तस्वीर को

पर मेरे उस शहर में तुम रहती हो

रक्त-माँस समेत

और तुम्हारा सुर्ख़ मूँ,

वो जो मुझे निषिद्ध शहद,

तुम्हारी वो बड़ी बड़ी आँखें सचमुच हैं

और बेताब भँवर जैसा तुम्हारा समर्पण,

तुम्हारा गोरापन मैं छू तक नहीं सकता!