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न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार देखते जाओ / दाग़ देहलवी
Kavita Kosh से
न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार<ref>द्रवित हृदय</ref> देखते जाओ
कि जी न चाहे तो नाचार देखते जाओ
बहार-ए-उमर् में बाग़-ए-जहाँ की सैर करो
खिला हुआ है ये गुलज़ार देखते जाओ
उठाओ आँख, न शरमाओ ,ये तो महिफ़ल है
ग़ज़ब से जानिब-ए-अग़यार<ref>दुश्मनों की ओर</ref> देखते जाओ
हुआ है क्या अभी हंगामा अभी कुछ होगा
फ़ुगां में हश्र के आसार देखते जाओ
तुम्हारी आँख मेरे दिल से बेसबब-बेवजह
हुई है लड़ने को तय्यार देखते जाओ
न जाओ बंद किए आँख रहरवान-ए-अदम<ref>परलोक सिधारने वाले</ref>
इधर-उधर भी ख़बरदार देखते जाओ
कोई न कोई हर इक शेर में है बात ज़रूर
जनाबे-दाग़ के अशआर देखते जाओ
शब्दार्थ
<references/>