भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न जाने कौन जनम की बात / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'
Kavita Kosh से
न जाने कौन जनम की बात-
याद मुझे आ जाती सहसा, जब होती बरसात!
न जाने कौन जनम की बात!
देख घटा का घना अँधेरा,
मन उदास हो कहता मेरा-
महाशून्य में कोई मुझको खोज रहा दिन-रात!
न जाने कौन जनम की बात!
जग-जग कर हिचकी-सी बिजली
फुरका मेरी पलके गीली
याद दिला जाती कुछ भूली बात मुझे अज्ञात!
न जाने कौन जनम की बात!
ठंडी-मंद हवा बरसाती
रोम-रोम सुधि से भर जाती!
जी करता-चिर मौन रहूँ मैं, होवे नहीं प्रभात!
न जाने कौन जनम की बात!
याद मुझे आ जाती सहास, जब होती बरसात!