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न जाने क्या हुआ,जो तूने छू लिया / नक़्श लायलपुरी

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न जाने क्या हुआ जो तूने छू लिया
खिला गुलाब की तरह मेरा बदन
निखर निखर गई सँवर सँवर गई
बनाके आईना तुझे ऐ जानेमन
न जाने क्या हुआ ...

बिखरा है काजल फ़िज़ाओं में, भीगी भीगी हैं शामें
बून्दों की रिम-झिम से जागी, आग ठण्डी हवा में
आजा सनम ! ये हसीं आग हम, लें दिल में बसा
न जाने क्या हुआ ...

आँचल कहाँ, मैं कहाँ हूँ, ये मुझे होश क्या है
ये बेख़ुदी तूने दी है, प्यार का ये नशा है
सुन ले ज़रा, साज़-ए-दिल गा रहा है नग़मा तेरा
न जाने क्या हुआ ...

कलियों की ये सेज महके, रात जागे मिलन की
खो जाएँ धड़कन में धड़कनें मेरे मन की
आ पास आ, तेरी हर साँस में मैं जाऊँ समा
न जाने क्या हुआ ...