भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न जाने क्यों / सूर्यदेव सिबोरत
Kavita Kosh से
याददाश्त ने
मुझे धोखा दिया है
न जाने क्यों !
मैं
खुद को भूल गया हूं
न जाने क्यों !
अब तो
बन गया हूं मैं
अपने ही लिए
एक अजनबी
न जाने क्यों !
मौत ने भी
ठुकरा दिया है मुझे
न जाने क्यों !
तुम्हारा मुझे ठुकराना
एक बहाना था महज़
न जाने क्यों !