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न तो जीने की कोई राह निकली / अशोक रावत
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न तो जीने की कोई राह निकली,
न जीने की हृदय से चाह निकली.
हर इक वादा सरासर झूठ निकला,
हर इकअच्छी ख़बरअफ़वाह निकली.
न जाने पाँव क्यों ठिठके किसी के,
मेरे दिल से कोई जबआह निकली.
कहाँ पहुंचा दिये माँ-बाप इसने,
ये पीढ़ी कितनी लापरवाह निकली.
किसी ने मुझको समझा या न समझा,
मेरे शेरों पे लेकिन वाह निकली.
गिला तक़दीर से भी किस लिए हो,
तबीयत तो हमारी शाह निकली.