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न दुःख न सुख / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
पलटता है जब भी वो
मेरी तरफ
उस राह पर पहले से ही बिछी हुई मेरी आँखें
झट से बरस पड़ती हैं
दुःख से नहीं
ख़ुशी से भी नहीं
केवल इसलिए कि राह पर धूल न उड़े
मुलायम हो जाए वो कच्ची पगडण्डी
जो राजमार्गों से बहुत दूर
मेरी दुनिया में उतरती है
जिस पर अब कोई
भूल से भी पाँव नहीं रखता !